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उजड़े हुए दरीचे उनींदे से दयार
उजड़े हुए दरीचे उनींदे से दयार
पूछ रहे हैं -क्या खोजते हो
यहाँ आकर बार बार
करतें हैं कनबतियां
आपस में फुसफुसाकर...
बाज़ार सारे ढह गए
ढह गई बसापत
किले में...
LIFESTYLE
जब जीवन ने पहली साँस ली
मन रीता सा क्यों है
नया साल
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उसका जाना
कंचन सुबह से ही अपने महानगर वाले घर में तैयारियों में जुटी थी। बैठक कक्ष में उसने आसन, दरी और फूल सजा दिए थे।...
पारिजात
अपराजिता जब पहली बार जब उस छ:फुटे पारिजात से मिली तो उसे लगा मानो वह किसी पुराने परिचित को देख रही हो। उसकी उपस्थिति...
कैसे बताऊँ मैं ही तो सरकार हूँ..
क्य बताऊँ किसलिए बेजार हूँ
क्या बताऊँ किसलिए बेजार हूँ
रोज के हालात से लाचार हूँ
तरबतर हैं चप्पलें बरखा बगैर
दुर्गंध से भरा हुआ बाजार हूँ
मकानों में...
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लक्ष्य
लक्ष्य चाहे कितना बड़ा हो
शुरुआत जमीन से करनी पड़ती है...प्रीति
वो चिड़िया
अब वो चिड़िया नहीं आती
जो आती थी कल तलक
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अब वो चिड़िया नहीं आती
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आज का विचार
वो सृष्टि है
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नित नूतन
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सिंदूरी रंग
टिकुली में ले
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समष्टि है
प्रीति राघव चौहान
चित्रांकन :आरुषि चौहान
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बातें हैं..
बात जब मैं की चली है तो चलो मैं भी कह दूँ
तुम अपनी मैं में रहो मैं खुदी में खुृश हूँ
तुमसे बेहतर न सही...